This poem is dedicated to my mother.
Actually I didn't want to write a sad poem but was not able to control myself (I guess :P). Hope you enjoy this. :)
मैं बैठी हूँ खिड़की के पास
और पलट रही कुछ पन्नों को
जहाँ पहुँच गई मैं बचपन में
यानि कि गंगा के तट पे ।
जब भी सोचूँ बचपन को
तो बस तू ही याद आती हैं माँ
गंगा के जल की कलकल में
बस गूंजती तेरी हँसी माँ ।
जब मैं सड़क पे गिरती थी
और रोते तुझसे लिपट जाती
कुछ आँसू की बूंदे तो
मेरे ऊपर भी गिरती थी ।
वो स्कूल से भागते हुए आना
और तेरे हाथ का खाना खाना
वो स्वाद और मिठास, दोनों हीं
क्यों अब नहीं मिल पाती माँ ।
जब भी कोई चिंता होती
मैं तुझसे पूँछ तो लेती थी
आज फिर किसी आपत्ति में
तू क्यों पास नहीं है माँ ।
याद है मुझे आज भी
जब मैं किसी से लड़ती थी
तुम मेरी ही तो फिक्र में
कितना घबरा जाती थी माँ ।
आज नहीं कोई डाँटने वाला
ना कोई गलती की गुंजाइश है
वो बचपन भले ना लौटे अब
पर तू यहीं आ जा ना माँ ।
मुझे खुश देखना बस
यहीं एक सपना तो हैं तेरा
फिर तुझसे दूर रहके मैं
कैसे खुश हूँ , तू ही बता ?
Actually I didn't want to write a sad poem but was not able to control myself (I guess :P). Hope you enjoy this. :)
मैं बैठी हूँ खिड़की के पास
और पलट रही कुछ पन्नों को
जहाँ पहुँच गई मैं बचपन में
यानि कि गंगा के तट पे ।
जब भी सोचूँ बचपन को
तो बस तू ही याद आती हैं माँ
गंगा के जल की कलकल में
बस गूंजती तेरी हँसी माँ ।
जब मैं सड़क पे गिरती थी
और रोते तुझसे लिपट जाती
कुछ आँसू की बूंदे तो
मेरे ऊपर भी गिरती थी ।
वो स्कूल से भागते हुए आना
और तेरे हाथ का खाना खाना
वो स्वाद और मिठास, दोनों हीं
क्यों अब नहीं मिल पाती माँ ।
जब भी कोई चिंता होती
मैं तुझसे पूँछ तो लेती थी
आज फिर किसी आपत्ति में
तू क्यों पास नहीं है माँ ।
याद है मुझे आज भी
जब मैं किसी से लड़ती थी
तुम मेरी ही तो फिक्र में
कितना घबरा जाती थी माँ ।
आज नहीं कोई डाँटने वाला
ना कोई गलती की गुंजाइश है
वो बचपन भले ना लौटे अब
पर तू यहीं आ जा ना माँ ।
मुझे खुश देखना बस
यहीं एक सपना तो हैं तेरा
फिर तुझसे दूर रहके मैं
कैसे खुश हूँ , तू ही बता ?
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