Monday, October 3, 2011

मन की चाहत !!

मन, आखिर तू क्या चाहता है?

क्यों, तू इच्छाओ के सागर में बहता?
क्यों, दिल को व्याकुल कर देता?
क्यों, प्यार की खोज में तू,
दर दर है भटकता रहता?

मन, आखिर तू क्या है चाहता?

दिल के सागर में है बहती,
इच्छाओ की गहरी नदिया,
इस अंतहीन सागर का पानी,
आखिर में खारा ही होता|

समझ तू जीवन के इस रहस्य को,
यहाँ हर कोई अधूरा ही होता,
अकेले हँसता, अकेले रोता,
अरमानो के सपने बुनता|

पर जीवन फूलो की सेज नहीं,
कांटो का एक उपवन है ये,
जहा सीखने को है मिलता,
थोड़े में ही, हँसते रहना|

इसलिए मन, तू क्यों है रोता?
क्यों है चाहता? क्यों गम मनाता?
क्यों नहीं तू हँसता रहता?
और चैन की नींद सो जाता.....