Monday, March 17, 2014

एक चाय का प्याला..

एक प्याला चाय का
अपने में कितनी यादें समेटे है
कितने चेहरे , कितनी बातें
हँसी ठिठोली, रूठना मनाना
ख़ुशी और गम के आँसू
सब एक चाय के प्याले में ही मैंने संजोये हैं ।

सुबह की पहली किरन में
पापा से यूँ ही गपियाना
मम्मी से लड़ के भाग जाना
भाई को सोते से जगाना
और आलस को दूर भगाना
सब एक चाय के प्याले से

कॉलेज में बंक मारके
टपरी पे वक़्त बिताना
या शाम को दोस्तों के साथ
दुनिया जहाँ की बाते करना
अपने सारे गम सुनाना
और उनको मुफ्त की सलाह देना
सब एक चाय के प्याले से

एक दोस्त जो दिल के करीब
उससे बैठ के चर्चा करना
जीवन के सिद्धांतो पे
अपनी धारणाओं की व्याख्या करना
लड़ना चिल्लाना , फिर एक दूजे को मनाना
सब एक चाय के प्याले से

शाम ढले घर को जाना
बैठ के कुछ बाते करना
पूरे दिन के किस्से कहानियाँ
कुछ हँसी और कुछ आँसू बाँटना
किसी के दिल के करीब आना
और उसमे अपना जहाँ पाना
सब एक चाय के प्याले से

कितना विचित्र है ये प्याला
दिन बदले समय यूँ बीता
लोग आए , कुछ रह गए और
कुछ चले गए
कुछ अच्छी, कुछ बुरी यादें
कुछ प्यार भरी मीठी तकरारे
कभी दिल का जुड़ना और कभी टूटना
कभी भविष्य के सपने संजोना
कुछ कविता कुछ गीत सुनना
कुछ सोच, एकदम से हँसना
दोस्तों की महफ़िल
गप्पे हाँकना
सब एक चाय के प्याले से

जीवन तो चलता ही रहता
पर जब भी एक प्याला चाय है आता
वक़्त बस थोडा थम जाता
एक नया गीत बन जाता
और अपनों को करीब ले आता
भूली बिसरी यादों पर से
वक़्त की जमी धूल हटाता
ये एक चाय का प्याला।