Thursday, November 14, 2013

अधूरी बातें... (1)

Recently I found my long lost diary in which I have compiled most of my poems during college days. It feels so good to find it and read it. It contains 15 poems in all, written mostly during 2009.

So happy to post them in my blog. Will try to post one poem a week (as time permits). The series is titled "अधूरी बातें". Hope you like it.

निकल पड़ी मैं ऐसी राहों पर
जिनकी कोई मंजिल ही नहीं
खो गयी मैं उस जहाँ में
जिसमें मेरा कोई अपना ही नहीं

 चाहा तो था कि तुम मेरे होते
माँगा तो था तुम्हे हर दुआ में
पर पता ना था मुझे इस जहाँ में
सिर्फ सपनों के बसेरे होते

तुम एक सपना ही तो थे
जिसे मैंने पाने की हसरत कर डाली
भूल से मैंने तुमसे
मोहब्बत करने की जुर्रत कर डाली

पर क्या करूँ ???
इस दिल को आज भी तुम्हारा इंतज़ार हैं
इस जीवन में बस अब एक
तुम्हें ही पाने की चाह हैं ।