Wednesday, October 16, 2013

Happy Birthday Maa

This poem is dedicated to my mother.

Actually I didn't want to write a sad poem but was not able to control myself (I guess :P). Hope you enjoy this. :)

मैं बैठी हूँ खिड़की के पास
और पलट रही कुछ पन्नों को
जहाँ पहुँच गई मैं बचपन में
यानि कि गंगा के तट पे ।

जब भी सोचूँ बचपन को
तो बस तू ही याद आती हैं माँ
गंगा के जल की कलकल में
बस गूंजती तेरी हँसी माँ ।

जब मैं सड़क पे गिरती थी
और रोते तुझसे लिपट जाती
कुछ आँसू की बूंदे तो
मेरे ऊपर भी गिरती थी ।

वो स्कूल से भागते हुए आना
और तेरे हाथ का खाना खाना
वो स्वाद और मिठास, दोनों हीं
क्यों अब नहीं मिल पाती माँ ।

जब भी कोई चिंता होती
मैं तुझसे पूँछ तो लेती थी
आज फिर किसी आपत्ति में
तू क्यों पास नहीं है माँ ।

याद है मुझे आज भी
जब मैं किसी से लड़ती थी
तुम मेरी ही तो फिक्र में
कितना घबरा जाती थी माँ ।

आज नहीं कोई डाँटने वाला
ना कोई गलती की गुंजाइश है
वो बचपन भले ना लौटे अब
पर तू यहीं आ जा ना माँ ।

मुझे खुश देखना बस
यहीं एक सपना तो हैं तेरा
फिर तुझसे दूर रहके मैं
कैसे खुश हूँ , तू ही बता ?

Wednesday, October 9, 2013

विचारों का पुनार्गमन

कुछ  मंजिले दूर सही ,
कुछ चाहते अधूरी ही सही ,
कुछ सपने बस आँखों में रहे 
दिल के अरमान दिल में ही सही

ये दुनिया कभी मेरी थी ही नहीं ,
चाहत तो केवल एक हँसी की थी 
उसकी खोज में हम अब भी है 
जीवन एक संघर्ष आज भी तो है । 

बस होठों की मुस्कान दिल से नहीं 
लबों की हँसी में भी वो बात नहीं 
लेकिन जीना है बस इसी के लिए 
हाँ , ये अरमान आज भी वही ..