This poem is again from my diary.. I wrote this on May 1, 2009
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो जैसे बहता सा समय रुक गया
चलती हुई हवा थम गयी
और धड़कनें मेरी कुछ कम हुई ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो एक ख्वाब पलकों पर आया
जिसमें मैंने तुम्हें अपना पाया
और मेरे प्यार ने मुझे अपनाया ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो गालों को मैंने अपने गीला पाया
ये ख्वाब मुझे बस ख़्वाब ही नज़र आया
और मैंने स्वयं को वर्तमान में पाया ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो तुम्हारी आँखों में मैंने ख़ुद को ढूंढा
सोचा कहीं तो मेरा अक्स नज़र आएगा
पर खुद को वहाँ ना पाकर
मैंने सोचा
ये गुनाह नज़रों का ही तो था
जिसने मेरे दिल में एक तूफां उठाया
और मैंने फिर से खुद को तन्हा पाया ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो जैसे बहता सा समय रुक गया
चलती हुई हवा थम गयी
और धड़कनें मेरी कुछ कम हुई ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो एक ख्वाब पलकों पर आया
जिसमें मैंने तुम्हें अपना पाया
और मेरे प्यार ने मुझे अपनाया ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो गालों को मैंने अपने गीला पाया
ये ख्वाब मुझे बस ख़्वाब ही नज़र आया
और मैंने स्वयं को वर्तमान में पाया ।
जब तुमने नजरें उठा कर मुझे देखा
तो तुम्हारी आँखों में मैंने ख़ुद को ढूंढा
सोचा कहीं तो मेरा अक्स नज़र आएगा
पर खुद को वहाँ ना पाकर
मैंने सोचा
ये गुनाह नज़रों का ही तो था
जिसने मेरे दिल में एक तूफां उठाया
और मैंने फिर से खुद को तन्हा पाया ।