Wednesday, September 10, 2014

समय

जीवन के कुछ लम्हों को
मैंने रोकना चाहा था
पर मुट्ठी में रेत को
क्या कोई पकड़ पाया है ?

जब समय हाथ से निकल गया
तब सिर्फ कुछ यादें बची थी
उन लम्हों की मस्तिष्क में
बस एक छाप रह गयी थी

ये यादें ही तो समय है
जो निरंतर बहता रहता है
मैंने उस बहते समय से
बस एक गगरी भर रखली हैं।

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