जीवन के कुछ लम्हों को
मैंने रोकना चाहा था
पर मुट्ठी में रेत को
क्या कोई पकड़ पाया है ?
जब समय हाथ से निकल गया
तब सिर्फ कुछ यादें बची थी
उन लम्हों की मस्तिष्क में
बस एक छाप रह गयी थी
ये यादें ही तो समय है
जो निरंतर बहता रहता है
मैंने उस बहते समय से
बस एक गगरी भर रखली हैं।
मैंने रोकना चाहा था
पर मुट्ठी में रेत को
क्या कोई पकड़ पाया है ?
जब समय हाथ से निकल गया
तब सिर्फ कुछ यादें बची थी
उन लम्हों की मस्तिष्क में
बस एक छाप रह गयी थी
ये यादें ही तो समय है
जो निरंतर बहता रहता है
मैंने उस बहते समय से
बस एक गगरी भर रखली हैं।
No comments:
Post a Comment